मुर्गेश शेट्टी,बीजापुर – बस्तर की पारंपरिक संस्कृति में शामिल मुर्गा लड़ाई अब अपने मूल स्वरूप से भटककर बड़े पैमाने पर जुए का अड्डा बन चुका है। खासकर जिले के तारलागुड़ा में इसकी स्थिति और गंभीर हो गई है, जहां खेल अब बच्चों तक को अपनी गिरफ्त में लेने लगा है। तेलंगाना से आए लोग इस पर कब्जा जमाकर इसे करोड़ों के सट्टे का माध्यम बना रहे हैं।

एक माह से मुर्गा बाजार में मेला जैसा माहौल बना हुआ है। तेलंगाना से आए व्यापारी यहां नाश्ता, शराब और बिरयानी की दुकानें लगा रहे हैं। इसी भीड़-भाड़ में स्कूल के कुछ बच्चें हाथ में पैसे लिए गुम रहे हैं तो कुछ बच्चें पानी की बोतलें बेच रहे हैं। कई नाबालिग जुए और सट्टे के माहौल में फंसकर लत के शिकार हो रहे हैं।
तारलागुड़ा थाने के सामने पर यह अवैध मुर्गा बाजार खुलेआम फल फुल रहा है। यहां रोजाना 50 लाख से 1 करोड़ रुपये तक का जुआ खेला जा रहा है। मुर्गा बाजार में प्रवेश के लिए अलग-अलग 300 रूपये, 500 रूपये और वीआईपी टिकट के नाम पर 1,000 रुपये वसूलते हुए हाथों में वीआईपी सील लगाया जा रहा हैं। चारों ओर हरे परदे लगाकर इसे पूरी तरह ढक दिया गया है, जिससे बाहर से कुछ भी न दिखे। अब तो ग्रामीण भी मजबूरी में टिकट खरीदकर ही अंदर जा पा रहे हैं।
ग्रामीणों ने बताया हैं कि इस बाजार का संचालन तेलंगाना के वानम प्रकाश के हाथ में है, जिसने लाखों रुपये देकर सरपंच काका भास्कर, सचिव श्रीनिवास दुधी और कुछ ग्रामीणों की मदद से पूरा मुर्गा बाजार का प्रबंधन हासिल कर लिया है। इसके चलते न सिर्फ जुए का दायरा बढ़ा है, बल्कि आसपास के गांवों में भी सट्टेबाजी की लत फैलने लगी है।
हर साल गांव का एक मोहल्ला जिसमें 10 ग्रामीणों का समूह होता है वे इस मुर्गा बाजार को 50-100 रुपये के टिकट लेकर मुर्गा लड़ाई आयोजित करता था। जिनके पास पैसे नहीं होते, वे भी दूर से इस परंपरा का आनंद लेते थे। लेकिन अब आरोप है कि सरपंच और सचिव ने लाखों रूपये लेकर इस परंपरा को पूरी तरह व्यावसायिक और अवैध कमाई का जरिया बनाया है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि मुर्गा लड़ाई बस्तर की एक पुरानी सांस्कृतिक परंपरा है, जो पहले केवल मनोरंजन और मेल-मिलाप का जरिया हुआ करती थी। लेकिन अब इसमें बाहरी राज्यों का दखल बढ़ने से यह परंपरा अवैध कमाई और सट्टेबाजी का साधन बन गई है।

जनजातीय गौरव समाज के जिला अध्यक्ष श्री पुरूषोत्तम शाह ने इस मामले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा, “मुर्गा बाजार बस्तर की संस्कृति और रंग-रूप से जुड़ा हुआ है। इसे अन्य राज्यों के व्यक्तियों द्वारा व्यापारी की तरह या सट्टेबाजी के लिए इस्तेमाल करना गलत है। इससे नाबालिग बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है और स्थानीय ग्रामीण भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह परंपरा अपनी मूल पहचान के साथ ही चलनी चाहिए, न कि अवैध कमाई का साधन बननी चाहिए।”
ग्रामीणों ने इस पर तुरंत रोक लगाने और पुलिस प्रशासन से कार्रवाई की मांग की है, ताकि इस सांस्कृतिक विरासत को जुए और सट्टे के चंगुल से बचाया जा सके और बच्चों को इस माहौल से दूर रखा जा सके।



