“आया मोचो दंतेश्वरी”गाकर बस्तर की पहचान विश्व स्तर तक करवाने वाले लोक कलाकार को बस्तर ने ही बिसराया
आसना स्थित बादल अकादमी का नाम स्व. मेघनाथ पटनायक के नाम पर हो
जगदलपुर। आया मोचो दंतेश्वरी, जुहार जुहार गणेश देवता,जय दुर्गा जय हो शरण शरण दुर्गा माय,मण्डई दखुक लाय जांवा रे भोजली जैसे प्रसिद्ध लोक गीत के रचनाकार और गायक स्व. मेघनाथ पटनायक ने अपने गीतों के माध्यम से न केवल बस्तर की खूबसूरती और विविधताओं को प्रस्तुत किया बल्कि लोगों को अपनी माटी से भी जोड़ा।
लेकिन स्व. मेघनाथ पटनायक को न तो जीवित रहते न ही उनकी मृत्यु के बाद वह सम्मान मिला जिसके वह अधिकारी थे। उनके गीतों की विशेषता यह कि वह आज भी जब बस्तर का वर्णन करना होता है तो उनके गीत ही प्रासंगिक होते हैँ। आया मोचो दंतेश्वरी, गीत में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से बस्तर के भूगोल,संस्कृति और चरित्र का वर्णन किया था।
और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि उनके बाद उनके स्तर का कोई लोक गायक और गीतकार बस्तर में अब तक नहीं आया।
लेकिन न तो तत्कालीन सरकार ने न ही वर्तमान सरकार ने उनकी कला को सम्मान दिया।आज भी बस्तर के इतिहास में उनका नाम नहीं है, न ही किस संस्था का नाम उनके नाम से न ही सरकार संगीत क्षेत्र में कोई सम्मान उनके नाम से प्रदान करती है।
जबकि उनके समकालीन लोक कलाकार स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया के नाम से राज्य सरकार सम्मान प्रदान करती है,तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस सम्मान की घोषणा की थी।
स्व. मेघनाथ पटनायक ने भी स्व.लक्ष्मण मस्तूरिया के स्तर के ही लोकगीतों की रचना की थी, आज बस्तर संभाग के हर घर में शादी से लकेर अन्य किसी भी उत्सव में स्व. मेघनाथ पटनायक के ही गीत बजते हैँ।
दुःखद ये है कि बस्तर क्षेत्र के जन प्रतिनिधि जो स्वयं भी उनके ही गीतों को सुनकर बड़े हुए हैँ उन्होंने भी स्व.मेघनाथ पटनायक को सम्मान दिलाने आजतक कोई प्रयास नहीं किया। जबकि वह इस स्थिति में,हैँ कि वह इस विषय में आवश्यक कार्रवाई कर सकें।
इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि इतने महान लोक कलाकार सामान्य जीवन परिचय भी मैं तो पार्टी पुस्तकों में उपलब्ध है ना ही किसी संस्था में। और तो और बस्तर क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि ने स्वर्गीय मेघनाथ पटनायक के सम्मान में किसी संस्थान का नाम रखने की मांग भी नहीं की।
आसन स्थिति बदल अकादमी का नाम यदि स्वर्गीय मेघनाथ पटनायक के नाम पर रखा जाता तो यह उनका सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती थी,पर जन्म प्रतिनिधियों को इतना सामान्य ज्ञान भी कौन दे??
सन 70 और 80 के दशक में जिस कलाकार ने रेडियो के जरिए बस्तर वसियों के दिल में राज किया हो उसे कलाकार की आत्मा आज एक छोटे से सम्मान के लिए तरस रही होगी। बस्तर की हर शादी उनके “खेलू खेलू गीत के बिना अधूरी मानी जाती है।
अब समय आ गया है कि बस्तर के बुद्धिजीवीयों,समाज सेवियों,इतिहाकारों, और लोक कलाकारों को संगठित होकर इस महान कलाकार के लिए उचित सम्मान की मांग की जानी चाहिए, नहीं तो समय का निर्मम चक्र इस महान कलाकार की निशानी भी खत्म कर देगा।
बस्तर के सभी जनप्रतिनिधियों को इसे संज्ञान लेना चाहिए उम्मीद करता हूं,लेंगे और स्व. मेघनाथ पटनायक के नाम पर लोककला के क्षेत्र में राज्य स्तर से एक सम्मान और बस्तर में एक संस्थान की घोषणा करेंगे।



